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    समयपूर्व रिहाई

    1. समयपूर्व रिहाई

    समयपूर्व रिहाई का प्राथमिक उद्देश्य अपराधियों का सुधार और समाज में उनका पुनर्वास और एकीकरण करना और साथ ही आपराधिक गतिविधियों से समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। ये दोनों पहलू आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं। इसी से सबंधित एक आनुषंगिक पहलू है जेल में बंदियों का आचरण, व्यवहार और उनका कार्य-निष्पादन। इनका असर उनकी पुनर्वास संभावनाओं और उनके द्वारा अर्जित छूट के आधार पर, या उन्हें समयपूर्व रिहाईके आदेश के आधार पर रिहा किए जा सकने की गुंजाइश पर पड़ता है। बंदियों की समय से पूर्व रिहाई के मूल में सबसे महत्वपूर्ण विचार यह है कि वे एक सभ्य समाज के हानिरहित और उपयोगी सदस्य बन गए हैं।

    1. राज्य स्तरीय समिति (एस.एल.सी.) का संघटन

    आजीवन कारावास के सिद्धदोष बंदियों की समय से पूर्व रिहाई/सजा माफी या किसी अन्य प्रकार की कटौती के संबंध में विचार करने के लिए निम्नलिखित समिति का गठन किया जाएगा। यह निम्नलिखित सदस्यों सहित एक स्थायी निकाय होगाः

    • प्रमुख सचिव/सचिव, गृह (कारागार) उत्तराखंड शासन- अध्यक्ष;
    • प्रमुख सचिव/सचिव, न्याय एवं विधि परामर्शी अथवा उनके द्वारा नामित अपर सचिव , न्यायस्तर से अन्यून अधिकारी – सदस्य;
    • प्रमुख सचिव/ सचिव ,गृह विभाग द्वारा नामित कोई अन्य सचिव- सदस्य;
    • अपर सचिव, गृह (कारागार) उत्तराखंड शासन- सदस्य;
    • महानिरीक्षक कारागार, उत्तराखंड, देहरादून- सदस्य-सचिव।
    1. सजा माफी/समय से पूर्व रिहाई के लिए पात्रता पर विचार

    प्रतिबन्धित श्रेणी से अन्यथा, ऐसे सिद्धदोष बन्दी सजा माफी/समयपूर्व रिहाई हेतु पात्र होगें, जिनके द्ववारा:

    • आजीवन कारावास की सजा दण्डित समस्त महिला/पुरुष सिद्धदोष बंदि, जिनके द्वारा विचाराधीन अवधि सहित 14 वर्ष की अपरिहार तथा 16 वर्ष की सपरिहार सजा व्यतीत कर ली गई हो।
    • आजीवन कारावास की सजा से दण्डित ऐसे सिद्धदोष बंदी जो निम्नलिखित में से किसी भी रोग से ग्रसित हों एंव जिनके संबंध में मेडिकल बोर्ड द्वारा उक्त बीमारी से ग्रसित होने का प्रमाण पत्र दिया गया हो –
    • दोनों फेफड़ा में क्षय की अंतिम अवस्था
    • लाइलाज दुर्दमता।
    • लाइलाज रक्त रोग।
    • रक्तसंकुलन के कारण हृदय की खराबी।
    • मानसिक अध: पतन के साथ पुरानी मिर्गी।
    • विकृति और पौष्टिकता संबंधी अल्सर के साथ अंतिम अवस्था का कुष्ठ रोग।
    • दोनों आंखों का पूर्ण अंधापन।
    • लाइलाज पैराप्लेजिया और हेमिप्लेजिक्स
    • अत्यधिक बढ़ा हुआ पार्किंसनिज़्म।
    • मस्तिष्क का ट्यूमर।
    • लाइलाज नाड़ी-अर्बुद
    • किडनी की अपरिवर्तनीय खराबी।
    • इसी प्रकृति की नश्वर बीमारी का कोई अन्य मानदंड।
    • आजीवन कारावास सजा से दण्डित समस्त सिद्धदोष बन्दी जिनके द्वारा 70 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली गयी है , विचाराधीन अवधि सहित 10 वर्ष की अपरिहार तथा 12 वर्ष की सपरिहार सजा व्यतीत कर ली गयी है ।
    • आजीवन कारावास की सजा से दंडित समस्त सिद्धदोष बंदी जिनका अपराध प्रतिबन्धित श्रेणी के उप प्रस्तर (vii) और (xi) में वर्णित अपराध को छोड़कर अन्य किसी भी प्रस्तर आच्छादित नही है तथा जिनके द्वारा विचाराधीन अवधि सहित 20 वर्ष की अपरिहार तथा 25 वर्ष की सपरिहार सजा व्यतीत कर ली गयी हो।
    • आजीवन कारावास की सजा से दंडित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी, जिनका अपराध प्रतिबन्धित श्रेणी के उप प्रस्तर (vii) और (xi) से भिन्न है और जिनके द्वारा विचाराधीन अवधि सहित 20 वर्ष की अपरिहार तथा 25 वर्ष की सपरिहार सजा व्यतीत कर ली गई है, के सम्बन्ध में मुख्य सचिव, उत्तराखंड शासन की अध्यक्षता में उपर्युक्त राज्य स्तरीय समिति द्वारा समयपूर्व रिहाई पर विचार किया जाएगा।
    1. प्रतिबन्धित श्रेणी
    • आजीवन कारावास से दंडित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जिनके निर्णय में माननीय न्यायालय द्वारा विशिष्ठ समय निर्धारित कर निरुद्धि हेतु आदेशित किया है।
    • आजीवन कारावास से दंडित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जिनके वाद का अन्यवेषण , दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (1946 का अधिनियम संख्या 25) के अधीन गठित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अथवा राष्ट्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा या दंड प्रकिया संहिता 1973 (1974 का अधिनियम संख्या 2) से भिन्न किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन अपराध का अन्वेषण करने के लिए शसक्त किसी अन्य अभिकरण ऐजेन्सी द्वारा किया गया है।
    • ऐसे सिद्धदोष बंदी जिन्हे ऐसे अपराधो के लिए दोष सिद्ध किया गया है जो संहिता, की धारा 435 के अधीन उन विषयों से सम्बन्धि है जिन पर संघीय सरकार की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है ,और जिसे साथ-साथ भोगो जाने वाली पृथक – पृथक अवधि के लिये कारावास का दण्डादेश दिये गया है , उसके सम्बन्ध में दण्डादेश के निलम्बन  ,परिहार या लघुकरण का राज्य सरकार द्वारा पारित कोई आदेश तभी प्रभावी होगा जब किये गये अपराधो के सम्बन्ध मे ऐसे दण्डादेशों के यथास्थिति , परिहार , निलम्बन या लघुकरण का आदेश केन्द्रीय सरकार द्वारा भी कर दिया गया है ।
    • आजीवन कारावास से सम्बन्धित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जिन्हे सामूहिक मानवध(तीन या तीन से अधीक हत्यायें/हत्याकाण्ड/नरसंहार) की घटनाओं से सम्बन्धित अपराधों में दोषसिद्ध किया गया हो ।
    • आजीवन कारावास से दण्डित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जिन्हे निरुद्धी की अवधी में जेल प्रशासन द्वारा पिछले पांच वर्षो के भीतर किसी बडी सजा से या पिछले दो वर्षो के दौरान किसी (चेतावनी से भिन्न) लघुदण्ड (मामूली सजा) से दण्डित किया गाय है ।
    • ऐसे सिद्धदोष बंदी जिन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई है, जिन्हें दण्डोदेश निलंबन/पैरोल/फरलो के दौरान किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है।
    • ऐसे सभी सिद्धदोष बंदी जिन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई है जो हिरासत के दौरान जेल या पुलिस हिरासत से पलायन किया गया हो।
    • ऐसा सिद्धदोष बंदी जिन्हें एक से अधिक अपराधिंक प्रकरणों में आजीवन कारावास की सजा से दण्डित किया गया हो ।
    • ऐसे सिद्धदोष बंदी जो भारतीय नागरिक नहीं हैं।
    • आजीवन कारावास से दण्डित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जिन्हें निम्न अधिनियमों के तहत दोषसिद्ध किया गया हो-

    –        विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967

    –        स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985

    –        स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अवैध व्यापार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 का अधिनियम संख्या 42)।

    –        सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का अधिनियम संख्या 52)।

    –        शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923।

    –        विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946

    –        विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी निवारण अधिनियम, 1974।

    –        लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012।

    • ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जो भारतीय दण्ड संहिता 1960 की धारा 363 क (भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए अप्राप्तव्य का व्यपहण या विकलांगीकरण), 370 (मानव तस्करी- दास के रुप में खरीदना या बेचना), 376 क (डरा धमकर या परिजनों की मृत्यु का भय दिखाकर बलात्कार), 376 घ (सामूहिक बलात्कार), 376 ङ (दोषसिद्ध द्वारा पुनः बलात्कार का अपराध), 489 ख (कूट रचित कैरेन्सी की खरीद-फरोक्त ) एवं 489 घ (कैरेन्सी नोटों या बैक नोटों की कूटरचना आदि ) के अन्तर्गत आजीवन कारवास की सजा से दण्डित किया गया हो ।
    • पेशेवर हत्यारे जो कॉन्ट्रैक्ट किलिंग के दोषी पाए जाते हैं।
    • आजीवन कारावास की सजा से दण्डित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 121 से 130 के अन्तर्गत राज्य के खिलाफ युद्ध छेटने या युद्ध छेडने का प्रयत्न करने या उकसाने के दोषी पाये गये हो ।
    • आजीवन कारावास की सजा से दण्डित ऐसे समस्त सिद्धदोष बंदी जो सरकारी सेवक की कर्तव्य पालन के दौरान उसकी हत्या का दोषी हो ।
    1. प्रक्रिया
    • सभी वरिष्ठ अधीक्षक/अधीक्षक/प्रभारी जेल अधीक्षक उपरोक्त पैरा में उल्लिखित नीति/निदेशों के अनुसार जेल में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले और हिरासत में रखे गए सभी सिद्धदोष बंदियों की पात्रता की जांच करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी पात्र व्यक्ति छूट न जाए और पात्र बंदियों की समय से पूर्व रिहाई से संबंधित प्रस्ताव प्रत्येक वर्ष में प्रत्येक तिमाही के पहले महीने के अंत तक महानिरीक्षक के साथ-साथ संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को उनकी सिफारिश के लिए भेजेंगे।
    • संबंधित जिला मजिस्ट्रेट प्रत्येक वर्ष में प्रत्येक तिमाही के दूसरे महीने के अंत तक महानिरीक्षक कारागार को अपनी सिफारिशें करेंगे।
    • बंदीयों की आयु एवं सजा की गणना वर्ष की प्रत्येक तिमाही की अन्तिम तिथि के अनुसार की जाएगी।
    • महानिरीक्षक कारागार उक्त नीति के आलोक में बंदियों की रिहाई के संबंध में प्राप्त प्रस्ताव का परीक्षण करते हुए वर्ष की प्रत्येक तिमाही के अंतिम माह के अंत तक जिला मजिस्ट्रेट/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक की आख्या सहित प्रस्ताव सरकार को भेजेंगे और सरकार सामान्यतः प्रस्ताव प्राप्त होने के दिन से बीस दिनों के भीतर समिति की त्रैमासिक बैठक आयोजित करेगी;

    परन्तु पैरा 522 (ii) (iii) से संबंधित बंदियों के मामले में, समिति जिला मजिस्ट्रेट/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट के बिना भी समयपूर्व रिहाई पर विचार कर सकेगी;

    • सरकार के स्तर पर बंदियों की रिहाई के संबंध में प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद समिति बंदी की सजा माफी/ समयपूर्व रिहाईके मामले पर विचार करेगी;
    • सजा माफी/समय से पूर्व रिहाई के मामले पर विचार करने के बाद समिति अपनी सिफारिश राज्य सरकार को भेजेगी और सरकार मुख्यमंत्री के माध्यम से सिफारिश राज्यपाल को अग्रेषित करेगी;
    • सिद्धदोष बंदी की सजा माफी/समय से पूर्व रिहाई के संबंध में अंतिम निर्णय राज्यपाल द्वारा लिया जाएगा;
    1. सजा माफी पर बंदी को जेल से रिहा करना

    राज्यपाल के अनुमोदन/आदेश के बाद, आजीवन कारावास से दंडित सिद्धदोष बंदियों को इस शर्त पर जेल से रिहा किया जाएगा कि वह कानून सम्मत आचरण को बनाए रखने के लिए अपनी रिहाई से पहले जेल के वरिष्ठ अधीक्षक/अधीक्षक के समक्ष 50,000.00 (केवल पचास हजार रुपये) से अनधिक राशि का एक व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करेगा।

    1. गलत तरीके से रिहा किए गए बंदी को फिर से हिरासत में लेना

    इन दिशा-निर्देशों के तहत यदि गलती से किसी ऐसे बंदी को उपरोक्त आदेशों के अनुसार रिहा कर दिया जाता है जिसका अपराध राज्य सरकार के विचार में ऐसी श्रेणी में है जिसके लिए उसे अदालत द्वारा दी गई सजा पूरी करनी चाहिए तो सरकार ऐसे बंदी की सजा में दी गई छूट को रद्द करते हुए उसे जेल में शेष सजा काटने के लिए फिर से हिरासत में ले सकती है।